मेरा माझी भी मेरी मंजिल से अनजान है हर मोड़ पर एक नया तूफान है जब भी लगा बस अगला मोड़ मेरी ख्वाहिश है जिंदगी वही थम जाती है जैसे सामने कोई अहंकारी चट्टान है
जो नही समझते मेरे स्वाभिमान को उनके लिए मेरा अहम ही सही कुछ ख्वाहिशे मुकम्मल भी होगी कभी इसका वहम ही सही जिन्दगी की रफ्तार धीमी है मगर हर परिस्थिति मे दृढ हू बस इतना खुदा का रहम ही सही मेरे ख्वाबो के मोतियों का ढेर है मेरे पास कुछ टूट-फूट भी जाये तो क्या बाकी को मंजिल मिल जाए एक आशा की लहर ही सही
जिंदगी के इम्तिहान इतने बड़े है जिसकी कोई समय सीमा नही कोइ सीमांत नही कोई छोर नही ना कोई पक्षपात ना कोई अपवाद है अंत सबका है इसका निष्कर्ष और निर्णायक दोनो ही अज्ञात है