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मंजिल

मेरा माझी भी मेरी मंजिल से अनजान है हर मोड़ पर एक नया तूफान है जब भी लगा बस अगला मोड़ मेरी ख्वाहिश है जिंदगी वही थम जाती है जैसे सामने कोई अहंकारी चट्टान है 

मकसद

यह ज़िन्दगी बिल्कुल फिजूल है जब तक इसका कोई मकसद नही और बिना किसी मकसद के निरंतर काम करते रहना यह भी जिंदगी का मकसद नही 

स्वाभिमान

जो नही समझते मेरे स्वाभिमान को उनके लिए मेरा अहम ही सही कुछ ख्वाहिशे मुकम्मल भी होगी कभी इसका वहम ही सही जिन्दगी की रफ्तार धीमी है मगर हर परिस्थिति मे दृढ हू बस इतना खुदा का रहम ही सही मेरे ख्वाबो के मोतियों का ढेर है मेरे पास कुछ  टूट-फूट भी जाये तो क्या बाकी को मंजिल मिल जाए एक आशा की लहर ही सही

शिकस्त

 हमे तो अपनी तालीम पर पूरा ऐतबार था  शिकस्त तो जाहिल दिल से खा गये  उसने तहज़ीब के चंद अल्फाज क्या बोले  हम वजीर हो कर भी मुलाजिम की जगह आ गये

life

जिंदगी के इम्तिहान इतने बड़े है जिसकी कोई समय सीमा नही कोइ सीमांत नही कोई छोर नही ना कोई पक्षपात ना कोई अपवाद है अंत सबका है इसका निष्कर्ष और निर्णायक दोनो ही अज्ञात है

संघर्ष

ज़िन्दगी के भीड़ मे  खुद को ढूंढ पाना बहुत मुश्किल है क्योंकि हर गली कूचे मे  तुम्हारे मुस्तक़बिल और किरदार को  एक लफ्ज़ बयान करने वाले बैठे है