मुकद्दर

अब बेखौफ जिंदगी है मेरी
न कोई आजमाइश रही।
न कोई रंजिश है खुदा के बन्दों से
न किसी से कोई फरमाइश रही ।
वैसे तो मुकद्दर मे तुम्हारे शिवा सब मिला मुझे
जिसकी कभी मुझे ख्वाहिश ही नही रही ।
कुछ तो इल्म था मुझे ।
कि यू ही नही आये दुनिया मे हम
कुछ तुम्हारा ही कर्ज़ बाकी था ।।
जिसकी कीमत रूह खो कर चुकाई हमने ।

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